Paltu sahib biography of michael
पलटू साहब
पलटू साहब एक संत कवि थे। उन्हें 'द्वितीय कबीर' भी कहा जाता है।
परिचय
[संपादित करें]संत पलटू साहब के जन्म वा मरण के समय के निश्चित पता नहीं चलता। अयोध्या से प्राय: चार मील पर अवस्थित रामकोट में इनकी एक समाधि है जहाँ पर इनकी मृत्युतिथि आश्विन शुक्ला 12 बतलाई जाती है। किंतु कोई संवत् नहीं दिया जाता और इसी प्रकार इनके शिष्य हुलासदास के ग्रंथ 'ब्रह्मविलास' में इनका जन्मकाल माघ सुदी नवमी सं.
1826 बतलाया गया कहा जाता है, किंतु ऐसा लगता है कि यह स्वयं उनके इनसे दीक्षा ग्रहण करने का ही समय होगा। संत पलटू साहब जाति के मध्यदेशिया कांदू बनिया थे और यह नगजलालपुर (जि. अम्बेडकर नगर ), में जो आजमगढ़ जिले की पश्चिमी सीमा के निकट वर्तमान है, उत्पन्न हुए थे, किंतु इनके माता-पिता के नामों का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है।
कहा जाता है, ये भी पहले अपने गाँव के पूरोहित गोविंद दूबे की भाँति किसी जानकीदास के शिष्य रहे, किंतु फिर संत भीखा साहब द्वारा दीक्षित होकर लौट आए पर इन्होंने उनसे ही दीक्षा ग्रहण कर ली। इनका पहले कोई और नाम था, किंतु इनके गुरु गोविंद सहब ने, इनमें 'पल पल पर अजपा जाप में लग जाने की दृढ़ प्रवृत्ति' पाकर इन्हें पलटू कहना आरंभ कर दिया। ये बहुत दिनों तक साधारण गृहस्थ का जीवनयापन करते रहे और पीछे मूँड़ मुँड़ाकर तथा करधनी तोड़कर विरक्त साधुओं में मिल गए। इनका कहना है कि मधुमक्खियों के, बूँद बूँद करके एकत्र किए गए मधु के किसी अन्य द्वारा निकाल लिए जाने पर दुखी बन जाती देखकर मुझे माया के रहस्य का बोध हो गया और मैंने उसे बला समझकर उसका परित्याग कर दिया (बानी भा.
2, पृ. 85)। परंतु ये इतना और भी कहते हैं कि इसके कारण मेरी प्रतिष्ठा बढ़ गई जिससे गंभीर लोग तक मेरे चरणों में भेंट चढ़ाने लगे (कुंङ 19) तथा जो परदे के भीतरवाले थे वे भी मेरे यहाँ पहुँचने लग गए (वही, 58)। फलत: पड़ितों, काजियों तथा वैरागी लोगों ने मिलकर मुझे 'अजात' घोषित कर दिया और सभी मेरे पीछे पड़ गए (वही, 255)। (कहते है कि ऐसे ही लोगों के प्रयत्नों के फलस्वरूप ये जीते जी जला दिए गए और यह फिर सुदूर जगन्नाथपुरी में जाकर प्रकट हुए)।
रामकोटा इनके अनुयायियों के लिए प्रमुख केंद्र है और उसके अतिरिक्त, ऐसे स्थानों में जवाढ़ (जि.
बहराइच), जलालपुर (जि.
Barack obama family life life schoolबस्ती) के भी नाम लिए जाते हैं जो तीनों ही इनके शिष्य पलटूप्रसाद की शिष्यपरंपरा से संबधित हैं। इनके अन्य शिष्य हुलासदास के शिष्यों का प्रमुख केंद्र बरौली (जि. बाराबंकी) में वर्तमान है।
रेखता
[संपादित करें]पलटू साहब की अनेक रचनाएँ प्रसिद्ध हैं जो फुटकर रूपों में ही मिलती हैं और उनमें से इनकी साखियों, कुंडलियों, रेखतों, झूलनों, अरिल्लों तथा शब्दों की गणना विशेष रूप से की जाती है तथा इनके कतिपय संग्रह भी प्रकाशित हो चुके हैं। इनकी पंक्तियों में बहुत स्पष्ट एवं सरल किंतु ओजपूर्ण और मुहावरेदार भाषा का प्रयोग हुआ है तथा अपने हृदय की सचाई और अपने भावों की निर्भीक अभिव्यक्ति के आधार पर, ये कभी-कभी द्वितीय 'कबीर' तक भी कहे जाते हैं। इन दोनों में विचारसाम्य के साथ-साथ एक ही जैसे शब्दों एवं वाक्यों का व्यवहार किया गया तक लक्षित होता है। संत 'पलटू-पंथ' भी चल पड़ा।